Public Opinion (Janmat) Meaning, Definition
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Public Opinion (Janmat) Meaning, Definition in hindi |
इस पोस्ट में हम janmat के अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ, प्रकिया व मीडिया की janmat में भूमिका के बारे में पढ़ेंगे।
जनमत का अर्थ (Meaning of Public Opinion)
जनमत सामान्य जनता का मत होता है, किसी विशिष्ट या व्यक्तियों का नहीं, साथ ही यह मत विवेक, बुद्धि, तर्क से प्राप्त परिणाम होता है। अब अगर हम 'जनमत' के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर दृष्टिपात करते हैं, तो पाते हैं कि यह 17वीं शताब्दी का एक अंग्रेजी शब्द है। जनमत शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच शब्द
Topinion से हुई है, जिसका प्रथम बार प्रयोग Montaigne के द्वारा 1588 ई. में किया गया था।
जनमत की परिभाषाएँ (Definition of Public Opinion )
लॉर्ड ब्राइस के अनुसार, "काफी समय के पश्चात् अस्थायी, किन्तु स्पष्ट विचार जब निश्चित
धारणाओं में बदलकर सभी के द्वारा स्वीकार किए जाते हैं, तो इसे ही जनमत कहते हैं।"
गिन्सबर्ग के अनुसार, "जनमत से अभिप्राय समाज में प्रचलित उन विचारों या निर्णयों से है, जो लगभग निश्चित हैं, जिनमें स्थिरता है, जो समाज के एक बड़े वर्ग के लोगों में समान रूप से विद्यमान हैं।"
कार्डिनेन कोनीज के अनुसार, "जनमत एक प्रकार से भावनाओं की एकीकृत सहमति है, जो व्यक्ति, समूह तथा विशेष समूह द्वारा स्वीकृत या अस्वीकृत की जाती है।"
विलियम एलाविक के अनुसार, "जनमत व्यक्ति के समूह द्वारा किसी एक विषय पर एकमत
विचाराभिव्यक्ति है।"
सुसान हर्बर्ट के अनुसार, "जनमत के औपचारिक सारणीकरण की प्रक्रिया प्राचीन यूनान में शुरू हुई, जहाँ इसे लोकतान्त्रिक प्रक्रिया का केन्द्रीय बिन्दु समझा जाता था।"
जनमत की विशेषताएँ (Qualities of Public Opinion)
जनमत की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. जिस प्रश्न या समस्या पर जनमत का अध्ययन अपेक्षित है, वह इतनी स्पष्ट और प्रत्यक्ष होनी चाहिए कि सम्बद्ध वर्ग अथवा जन-समुदाय उसका अस्तित्व तुरन्त स्वीकार कर ले।
2 जनमत समाज के व्यक्तियों की प्रतिक्रियाओं का समाहार है। वयस्क मताधिकार पर आधारित लोकतन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति की अपनी-अपनी सम्पत्ति का एक समान मूल्य है।
3 जनमत का रूप तभी स्पष्ट और ठोस होता है, जब जन-समुदाय किसी प्रस्ताव को 'हाँ या 'ना' द्वारा स्वीकार करे या ठुकरा दे। नशाबन्दी के प्रश्न को हम
उदाहरण के रूप में ले सकते हैं। वैसे तो सभी लोग जानते हैं कि मदिरापान के क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं, फिर भी यही कहना पड़ेगा कि इस प्रश्न पर हमारे देश में जनमत पर्याप्त रूप से संगठित नहीं हुआ है, क्योंकि नशाबन्दी को लागू करने के लिए अपेक्षित प्रयत्न नहीं किए जा रहे हैं।
इसके विपरीत परिस्थितियाँ ऐसी हो गई हैं कि मदिरापान को प्रोत्साहन मिल रहा है, इसलिए यह कहना पड़ेगा कि नशाबन्दी के लिए देश का जनमत तैयार नहीं है।
4 अगर हम जनमत को देखें तो इसके दो रूप हमारे सामने आते हैं- प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष।
प्रत्यक्ष रूप में जब हम अनुभव करते हैं कि हमारी कथनी-करनी को दूसरे सभी देखते हैं, तो ऐसे में हम सोच-समझकर किसी प्रश्न पर अपना मत प्रकट करते हैं।
दूसरा रूप अप्रत्यक्ष जनमत है, जिसमें हम अपने आपमें ही अप्रत्यक्ष रूप से किसी विचार को प्रकट करते हैं। यह भी आवश्यक नहीं है कि हम किसी को बताएँ कि हमने क्या सोचा है?
5. प्रचार के लिए आवश्यक है कि जनमत लिखित अथवा मौखिक रूप या प्रतीकों द्वारा व्यक्त हो। अव्यक्त भावनाएँ चाहे कितनी भी गहरी हों, जनमत के
के लिए हैं, क्योंकि प्रायः उनके अस्तित्व को संदिग्ध माना जाता है।
जनमत निर्माण की प्रक्रिया (Process of Public Opinion)
1 जनमत का सम्बन्ध किसी सार्वजनिक विषय अथवा समस्या से सम्बन्धित होता है।
2. जनमत की उत्पत्ति समूह अथवा समुदाय के प्रत्येक व्यक्ति द्वारा गम्भीर चिन्तन के बाद सम्भव होती है।
3. जनमत निरन्तर परिवर्तित होता रहता है।
4. जनमत हमेशा वाद-विवाद के पश्चात् ही निर्मित होता है।
5. जनमत व्यापक रूप से स्वीकार किया हुआ मत होता है।
6. जनमत की उत्पत्ति सामूहिक होती है। जनमत किसी एक व्यक्ति का मत नही होता है।
7. जनमत आवश्यक नहीं कि वह तर्कसंगत ही हो, वह तर्कहीन भी हो सकता है।
8. जनमत जनता के विश्वास, पूर्वाग्रह, रूढ़ियुक्ति, आदर्श अथवा मूल्य आदि से प्रभावित होता है।
9. जनमत जनता का सार्वजनिक मत होता है, अत: सम्पूर्ण जनता के सदस्यों को सक्रिय बनाए रखता है।
10. प्रचार माध्यमों के कारण प्रतिष्ठित, शक्ति व धन सम्पन्न व्यक्तियों द्वारा जनमत प्रभावित होता है।
जनमत तथा बहुमत में पर्याप्त अन्तर है। लावेल के अनुसार, किसी भी मत के जनमत होने के लिए केवल बहुमत ही पर्याप्त नहीं है और न ही एकमत आवश्यक है, वरन् मत का ऐसा होना भी आवश्यक है कि अल्पसंख्यक उसमें हिस्सेदार न बनते हुए भी उसे स्वीकार कर लेने के लिए बाध्य हों और वह भी डर के कारण नहीं, अपित विश्वास के आधार पर होना चाहिए। फिर भी यदि प्रजातन्त्र अपने आप में पूर्ण है तो अल्पसंख्यक की यह स्वीकृति उसकी प्रसन्नता या स्वेच्छा से प्राप्त होनी चाहिए
Role of Media in Public Opinion
समाचार-पत्र
समाचार-पत्र दैनिक खबरों, सम्पादकीय लेख और कार्टूनों के माध्यम से विभिन्न तथ्यों को जनता के सामने रखकर जनता को शिक्षित करने तथा जनमत को प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये जन समस्याओं, शिकायतों और कठिनाइयों को शासन तक पहुँचाते हैं तथा जनता को शासन की नीतियों और कार्यक्रमों से अवगत कराते हैं। मुख्य रूप से समाचार-पत्र उन व्यक्तियों के विचारों या धारणाओं के निर्माण में सहायता करते हैं, जिनके अपने कोई विचार न हों।
चूंकि समाचार-पत्रों की पहुँच जनसंख्या के एक बड़े भाग तक है, इसलिए इन समाचार-पत्रों में प्रकाशित तथ्य तथा लेख जन -जीवन पर अपना स्थायी प्रभाव डालते हैं। इनमें जीवन के यथार्थ के सन्दर्भ में जनमत को प्रभावित करने की क्षमता होती है। लोकतान्त्रिक देशों में समाज विरोधी नीतियों और कार्यक्रमों के विरोध में समाचार-पत्र महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यदि समाचार-पत्र स्वतन्त्रता के सही अर्थों को समझें तथा निष्पक्ष तरीके से कार्य करें, तो वह समाज को सही पक्ष में दबाव बनाने हेतु अभिप्रेरित करते हैं।
टेलीविजन
आज संचार के अन्तर्गत टेलीविजन की भूमिका बढ़ती जा रही है।
समाचार चैनलों के उदय ने लाइव प्रसारण के माध्यम से आम व्यक्ति तक अपनी पहुँच बनाई है। हाल ही में प्रलयकारी सुनामी लहरों द्वारा महाविनाश के दृश्यों को, गुजरात साम्प्रदायिक त्रासदी (2002) और कारगिल युद्ध (1999) का सीधा प्रसारण टीवी चैनलों के द्वारा किया गया। इसका व्यापक प्रभाव जनता पर पड़ा। इसने जनमत निर्माण में योगदान किया।
रेडियो
रेडियो की पहुँच आज सर्वाधिक है। गाँव से लेकर शहरों तक सभी
जगह यह आसानी से उपलब्ध है। देश-दुनिया में घटने वाली घटनाओं का प्रसारण इसके द्वारा किया जाता है। यह जनमत निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
मीडिया की सीमाएँ
लोकतन्त्र शासन प्रणाली में जहाँ एक ओर मीडिया का अभूतपूर्व योगदान है, वहीं सूक्ष्म दृष्टि से अवलोकन करने पर इसकी कुछ सीमाएँ भी स्पष्ट हो जाती हैं। लोकतन्त्र शासन प्रणाली में भाषण तथा अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता तो प्रदान की गई है, परन्तु इस अधिकार के अन्तर्गत आलोचना तभी प्रभावी हो सकती है, जब यह आलोचना किसी उददेश्य विशेष के लिए तथ्यों पर आधारित तथा निष्पक्ष रूप से की गई हो। मीडिया द्वारा की गई आलोचना तभी सार्थक हो सकती है, जव वह निष्पक्ष तथा तथ्यों पर आधारित हो। यह तभी सम्भव है, जब मीडिया सरकारी नियन्त्रण से तथा अन्य दबावों से मुक्त हो। लोकतान्त्रिक देश में मीडिया की स्वतन्त्रता जनता पर ही निर्भर करती है। जागरूक जनता ही मीडिया की स्वतन्त्रता को कायम रख सकती है। मीडिया की यह स्वतन्त्रता तब समाप्त हो जाती है, जब सरकार अपने स्वार्थ के लिए उन्हें सच्चाई प्रकट करने से रोक देती है।
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