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न्यायालय की अवमानना की अवधारणा Concept of contempt of court
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न्यायालय की अवमानना Contempt of court
न्यायालय की अवमानना के मामले में हमारा संविधान मौन था, इसलिए संसद द्वारा वर्ष 1952 में एक अधिनियम द्वारा न्यायालय के अवमानना का उल्लेख किया गया, लेकिन वर्ष 1952 के इस अधिनियम में 'अवमानना' को सम्यक् रूप से परिभाषित नहीं किया गया था। वर्ष 1971 में एक नया अधिनियम लागू किया गया, जिसे न्यायालय के अवमानना का अधिनियम, 1971 कहा गया। इस अधिनियम के अनुसार न्यायालय की अवमानना का अर्थ है- जान-बूझकर न्यायालय के निर्णय, निर्देश, डीक्री, आदेश, रिट या किसी भी माध्यम द्वारा प्रकाशन या निन्दा करना।
न्यायालय की अवमानना की अवधारणा Concept of contempt of court
न्यायालय की अवमानना से आशय फौजदारी और दीवानी दोनों है। फौजदारी अवमानना के अन्तर्गत न्यायालय की विश्वसनीयता पर आघात पहुंचाना या उसे कम करना, न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप करना, उसके प्रति पूर्वाग्रह रखना, न्याय-प्रक्रिया में बाधा पहुंचाना, न्यायालयाधीन मामलों पर भ्रमपूर्ण टिप्पणी करना, अनर्गल आरोप लगाना, गवाहों को प्रभावित करना या उन्हें धमकी देना, अदालत की कार्यवाही को तोड़-मरोड़ कर प्रकाशित करना या प्रतिबन्धित अथवा गुप्त तथ्यों को उजागर करना आदि है। दीवानी अवमानना से तात्पर्य न्यायालय के निर्णय, निर्देश, प्रक्रिया आदि की अवज्ञा या न्यायालय में ली गई शपथ का उल्लंघन करना है।
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न्यायालय अवमान अधिनियम, 1971 Contempt of court act 1971
इस अधिनियम में जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो।
1 'न्यायालय अवमान' से सिविल अवमान अथवा आपराधिक अवमान अभिप्रेत है।
2. 'सिविल' अवमान से किसी न्यायालय के किसी निर्णय, डिक्री, निर्देश, आदेश, रिट या अन्य आदेशिक की जान-बूझकर अवमानना करना अथवा न्यायालय से किए गए किसी वचनबन्ध को जान-बूझकर भंग करना अभिप्रेत है।
3. आपराधिक अवमान से किसी भी ऐसी बात को (चाहे बोले गए या लिखे गए शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्य रूपणों द्वारा, या अन्यथा प्रकाशन अथवा किसी भी अन्य कार्य का करना अभिप्रेत है, जो किसी न्यायालय को कलंकित करता है या जिसकी प्रवृत्ति उसे कलंकित करने की है।
4. जो किसी न्यायिक कार्यवाही के सम्यक अनुक्रम पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है या उसमें हस्तक्षेप करता है या जिसकी प्रवृत्ति उसमें हस्तक्षेप करने की है अथवा
5. जो न्याय प्रशासन में किसी अन्य रीति से हस्तक्षेप करता है या जिसकी प्रवृत्ति उसमें हस्तक्षेप करने की है अथवा जो उसमें बाधा डालता है या जिसकी प्रवृत्ति उसमें बाधा डालने की है।
6. 'उच्च न्यायालय' से किसी राज्य अथवा संघ राज्य क्षेत्र के लिए उच्च न्यायालय अभिप्रेत है और किसी संघ राज्य क्षेत्र में न्यायिक आयुक्त का न्यायालय इसके अन्तर्गत है।
7. इस अधिनियम में या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी, किसी ऐसी सिविल या दाण्डिक कार्यवाही के सम्बन्ध में प्रकाशन के समय लम्बित नहीं है, किसी ऐसी बात को प्रकाशन के बारे में, जो उपधारा (1) में वर्णित है या नहीं समझा जाएगा कि उससे न्यायालय अवमान होता है।
8. कोई भी व्यक्ति इस आधार पर कि उसने ऐसा कोई प्रकाशन वितरित किया है, जिसमें कोई ऐसी बात अन्तर्विष्ट है, जो उपधारा (1) में वर्णित है; उस दशा में न्यायालय अवमान का दोषी नहीं होगा, जिसमें वितरण के समय उसके पास यह विश्वास करने के समुचित आधार नहीं थे।
मीडिया और न्यायालय की अवमानना Media and Contempt of court
मीडिया के कार्यों में एक कार्य न्यायालय में चल रही सुनवाई को जनता के सम्मुख अनावृत्त करना भी होता है और न्यायालय के किसी आदेश की मीमांसा करना भी मीडिया का ही कर्त्तव्य है, इसलिए न्यायालय की अवमानना और मीडिया का गहरा अन्तर्सम्बन्ध है।
जनतन्त्र में जनमत का अत्यधिक महत्त्व है और न्यायालय के किसी फैसले या आदेश पर जनमत बनाने में मीडिया की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। आम जनजीवन में देखा जाता है कि सरकारी विभागों, सार्वजनिक उपक्रमों और स्थानीय निकायों आदिं में अनियमितताओं, भ्रष्टाचार आदि की शिकायतें मिलती हैं और जनहित से जुड़ी समस्याओं को उजागर करना मीडिया का ही उत्तरदायित्व है। अब अगर न्यायालय या न्यायिक प्रक्रिया में इस प्रकार की कोई गड़बड़ी , कोई अनियमितता किसी मीडियाकर्मी को नजर आती है, तो यह मीडिया का ही काम है कि' जनता उस गड़बड़ी के बारे में जाने। लेकिन 'अवमानना' की वजह से ऐसी अनियमितताओं की अनदेखी कर देते हैं।
युवकों के लिए हानिप्रद कानून, 1956
युवकों के लिए हानिप्रद कानून, 1956 भारत में 1 फरवरी, 1957 को लागू हुआ था। इस कानून का उद्देश्य बालकों तथा किशोरों को हानिकारक प्रकाशनों से होने वाले दुष्परिणामों से बचाना था। इस कानून के अन्तर्गत पत्रिका,पैम्फलेट, लीफलेट, समाचार-पत्र आदि के ऐसे प्रकाशन आते हैं, जोकि अपराध, घृणा एवं भयावह प्रवृत्ति की घटनाएँ आदि के भाव जगाता हो। चाहे यह भाव चित्रों के माध्यम से ही या बिना चित्रों की सहायता के। यदि कोई व्यक्ति इस प्रकार के हानिकारक प्रकाशन की बिक्री करता है, किराए पर देता है, वितरण करता है या' अन्य किसी माध्यम से प्रकाशित करता है अथवा सार्वजनिक प्रदर्शन या वितरण हेतु इसका मुद्रण या निर्माण करता अथवा इसका विज्ञापन करता है, तो इस कानून के तहत उसे छः माह की कैद अथवा जुर्माना अथवा दोनों सजा का प्रावधान है।
Concept of contempt of court |
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