अश्लीलता चित्रण निरोधक अधिनियम व सिनेमेटोग्राफी अधिनियम नोट्स
cinematography act 1952 |
पत्रकारिता एवं जन संचार के लिए नोट्स व पाठ्य सामग्री
Journalism and mass communication notes in hindi and study material अश्लीलता चित्रण निरोधक अधिनियम 1986
सिनेमा की परिभाषा (Defination of cinema)
सत्यजीत रे के अनुसार, “एक फिल्म चित्र है, फिल्म शब्द है, फिल्म आन्दोलन है, फिल्म नाटक है, फिल्म संगीत है, फिल्म एक कहानी है, फिल्म हजारों अभिव्यक्तिपूर्ण श्रव्य एवं दृश्य आख्यान है।”'
डॉ. अर्जुन तिवारी के अनुसार, “चलचित्र मानव की गहन अनुभूतियों और संवेदनाओं को प्रकट करने वाला एक अत्याधुनिक माध्यम है, जिसमें लेखन, दृश्य, कल्पना, मंच-निर्देशन, रूप-सज्जा के साथ प्रकाश विज्ञान, इलेक्ट्रॉनिक्स, कार्बनिक और भौतिक रसायन विज्ञान के तकनीकी योगदान है। यह सृजनात्मक और यान्त्रिक प्रतिभा का सुन्दर संगम है।”
डॉ. रोजर्स के अनुसार, “चलचित्र किसी क्रिया को उत्प्रेरित करने के लिए एक उत्तरोत्तर अनुक्रम में प्रश्नेपित छायाचित्रों की एक लम्बी श्रृंखला द्वारा विचारों के सम्प्रेषण का एक माध्यम है।”
जगदीश चन्द्र माथुर के अनुसार, ''वाक् चित्रों ने विश्व के कोने-कोने से जीवन की सांगोपांग छवियों, संगीत, ध्वनियों और बोलियों को एक-दूसरे के करीब रखा। इस तरह “वन वर्ल्ड" (एक दुनिया) का नारा तीव्र हुआ।”
अश्लीलता चित्रण निरोधक अधिनियम, 1986
इस अधिनियम के द्वारा समाज में अश्लीलता फैलाने की कोशिश करने को नियन्त्रित करने का प्रयास किया गया है। “अश्लीलता को परिभाषित करते हुए अधिनियम में कहा गया है कि नारी आकृति का ऐसे रूप में चित्रण, जिसमें उसके रूप, शरीर या किसी शारीरिक अंग का प्रदर्शन किया गया हो और जिसका प्रभाव अश्लील, भ्रष्ट अप्रतिष्ठाजनक, शर्मनाक या
जन-आंचार को आघात पहुँचाने वाला हो तो वह अश्लील माना जाएगा।” जनसंचार माध्यमों द्वारा अश्लील चित्रण पर प्रतिबन्ध लगाने के विषय में जनमत बनाने के लिए विधि-आयोग द्वारा एक कार्यकारी प्रपत्र तैयार किया गया था, जिसमें भारतीय दण्ड संहिता की धारा-29 के अन्तर्गत कामुक हितों को पोषित करने वाली कोई भी पुस्तक, पुस्तिका, रेखाचित्र, चित्रांकन, लेख प्रदर्शन, आकृति या ऐसी कोई अन्य वस्तु, अश्लील समझी जाएगी। अश्लीलता चित्रण निरोधक अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत छिपे तौर पर अमर्यादित व अश्लील सामग्री का चित्रण करने वाला व्यक्ति भी दण्ड का पात्र है।
इस अधिनियम के अनुसार नग्न नारी शरीर या नारी के अंग-प्रत्यंगों का सार्वजनिक प्रदर्शन दण्डनीय है। नारी-पुरुष की किसी भी मैथुनिक-मुद्रा का निरूपण तथा मानव-प्रेम के प्राकृतिक व सहज सम्बन्धों का सार्वजनिक प्रदर्शन भी दण्डनीय है।
सिनेमेटोग्राफ अधिनियम 1952
सिनेमा फिल्मों के निर्माण, प्रसारण व वितरण कोविनियमित करने के लिए यह अधिनियम, संसद द्वारा पारित किया गया था। इस अधिनियम के कुल चार भाग हैं।
भाग-1, भाग- 2 व भाग- 4, पूरे भारतवर्ष पर लागू होते हैं, जबकि भाग-3 में दिए गए प्रावधान मात्र केन्द्र-शासित प्रदेशों पर ही लागू होते हैं। समय-समय पर इस अधिनियम में कुछ महत्त्वपूर्ण संशोधन भी किए गए हैं।
इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित है -
1.केन्द्र सरकार एक 'फिल्म प्रमाणन परिषद्' (फिल्म सेंसर बोर्ड) बनाएगी, जो भारत में प्रदर्शित की जाने वाली फिल्मों को देखकर बताएगी की वह फिल्म सार्वजनिक-प्रदर्शन के उपयुक्त है या नहीं। सेंसर बोर्ड द्वारा प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के बाद ही किसी फिल्म का सार्वजनिक प्रदर्शन किया जा सकेगा।
2. फिल्म का अर्थ किसी सिनेमेटोग्राफ फिल्म से है। फिल्म के प्रदर्शन हेतु प्रयोग किए जाने वाले उपकरण भी सिनेमेटाग्राफ की परिभाषा के अन्तर्गत आते हैं।
महत्वपूर्ण तथ्य
वर्ष 2009 में प्रदर्शित फिल्म थ्री इडियट चेतन भगत के उपन्यास "फाइव प्वाइण्ट समवन" पर आधारित थी।
वर्ष 1974 में प्रदर्शित शोले फिल्म भारतीय सिनेमा की 'ऑल टाइम ग्रेट' फिल्म मानी जाती है।
वर्ष 1943 में मम्बई में भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) की स्थापना की गई |
पृथ्वीराज कपूर ने वर्ष 1944 में पृथ्वी थियेटर्स के नाम से नाटकों के मंचन की संस्था बनाई।
लता मंगेशकर सम्मान संगीत के क्षेत्र में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा दिया जाता है।
ऑस्कर अवार्ड की शुरूआत वर्ष 1929 में हुई थी।
मेरा नाम जोकर और “संगम दो ऐसी फिल्में हैं, जिनमें दो बार मध्यान्तर हुए थे।
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